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Saturday, December 27, 2008

बस यूं ही

इख़्तालाफ़ात का अंजाम जंग न हो
खुश्बू यह अमन की कभी कम न हो

सरहद पर डटा जवान किसी का सपना होगा
सरहद पर किसी के सपनों का ख़ून न हो

मादरे वतन को दिलो जान से चाहो मगर
किसी दूसरे की मां को कोई नुकसान न हो

अमन की राह पर वक्त है कुर्बान होने का
जंग-ए-मैदान पर कोई जान कुर्बान न हो

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