तकसीम हो चला है मुल्क़ मेरा पुर्ज़ों में,
कोई औजार मिले तो इन्हें जोड़ दूं.
तुम्हे शायद परवाह नहीं रहनुमाओं
पर अपने मुल्क को ऐसे कैसे छोड़ दूं
ना कोई गांधी, ना कोई भगत
मादर-ए-वतन को कैसे एक नई भोर दूं
डूब रही है अंधेरे में मुल्क की तकदीर
कोई राहे रोशन मिले तो उस जानिब मोड़ दूं