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Friday, November 4, 2011

घुटन

मर्ज़ी के ख़िलाफ चल रही हैं सांसे मेरी
ना काबिले बर्दाश्त होती जा रही है ये घुटन

नुमाइश सी लगने लगी है ये ज़िंदगी
देखें कब नसीब होती है इसे क़फ़न

वहुत ढूंढा, मगर नहीं मिली ऐसी कव्रगाह
जहां कर सकूं तुम्हारी यादें दफ़न

Saturday, October 29, 2011

तलाश

हर चेहरे में ढूंढता हूँ तुम्हे
हर जगह तलाशता हूँ तुम्हे

ये आस लिए फिरता हूँ
कही से तुम आओ, मेरी पीठ थपथपाओ

तुम्हे फिर गले लगाउं
तुमसे करुं शिकायतें
कि कहां थी तुम
मुझे क्यों छोड़ गई थी तुम

जानता हूँ बेफिज़ूल है ये ख्वाब
ना तुम हो, ना तुम्हारा शहर

फिर भी इक आस लिए फिरता हूँ
हर चेहरे में तुम्हे ढूंढता हूँ
हर जगह तुम्हे तलाशता हूँ

Thursday, October 27, 2011

हर रात...

हर रात सिलता हूँ माज़ी की कतरने
हर रात होती है यादों से जद्दोजहद

हर रात अंधेरे में यादें होती हैं रोशन
हर रात बिस्तर की सिलवटों में ढूंढता हूँ तुम्हे

हर रात उठती टीस को पहनाता हूँ क़फ़न
हर रात सुलगते अरमानों का घोंटता हूँ गला

आज रात का फिर वही किस्सा
अंधेरा, सन्नाटा, तन्हाई मेरा हिस्सा

Wednesday, October 26, 2011

इल्तेजा

ज़रा रुको, रुक जाओ,
मुझे यूँ छोड़ के ना जाओ,

मेरा दामन ना छोड़ो,
मुझे तन्हा ना छोड़ो,
मुझे यूँ दफनाके ना जाओ

क्यों छोड़ने पर हो मुझे आमादा
क्यों ज़माने से हो ख़ौफ़ज़दा
इन सवालों का कुछ तो जवाब देती जाओ

इक आवाज़ पे पहले दौड़ी चली आती थी तुम
आज गिड़गिड़ा रहा हूँ मैं
ज़रा रुको, रुक जाओ,
मुझे यूँ छोड़ के ना जाओ।