Saturday, December 27, 2008
बस यूं ही
खुश्बू यह अमन की कभी कम न हो
सरहद पर डटा जवान किसी का सपना होगा
सरहद पर किसी के सपनों का ख़ून न हो
मादरे वतन को दिलो जान से चाहो मगर
किसी दूसरे की मां को कोई नुकसान न हो
अमन की राह पर वक्त है कुर्बान होने का
जंग-ए-मैदान पर कोई जान कुर्बान न हो
Friday, December 26, 2008
कौन चाहता है जंग?
Tuesday, December 23, 2008
बस यूं ही
हाथ तंग, जेब ख़ाली, रिज़्क पे सलीब दोस्तों
खुदकुशी है गुनाह... सबक-ए-क़ुरआन
फ़ैज़, अनवर, सलीम फिर क्यों बने फ़िदायीन दोस्तों
इंतख़ाब की बारिश से जन्नत हुई और भी हसीन दोस्तों
दोनों मुल्क इससे कुछ तो सबक ले दोस्तों
हवाओं का रुख़ भी कभी अपनी तरफ होगा दोस्तों
पूछ-परख होगी हमारी...खैर-मक़दम भी होगा दोस्तों
Friday, December 19, 2008
सबको बांटों...हमको डांटों..
Sunday, December 14, 2008
कुर्सी पर जाती हावी
चलिए पाँच राज्यों में चुनाव हो गए और फ़ैसला भी आ गया। हालांकी राजस्थान में चुनावी नतीजों ने बीजेपी को सकते में डाल दिया है... ख़ैर आने वाले दिनों में पार्टी हार के कारणों का पता भी लगा लेगी। यहा मैं नए निज़ाम यानी कांग्रेस का ज़िक्र करना चाहता हूँ। कांग्रेस जैसे तैसे जीत की दहलीज़ तक पहुँच ही गई और जोड़-जुगाड़ करके मंत्रीमंडल का गठन भी कर लेगी... लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दो-तीन दिन जो एपीसोड चला वो एक बानगी है हमारे गर्त में जाते राजनीति की। प्रदेश में कांग्रेस जब जीत कर आई तभी यह लगभग तय हो गया था अगले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत होंगे, लेकिन हमारे राजनेता अपने स्वार्थ की बली कैसे दे देते...? सब शुरु हो गए अपनी-अपनी दावेदारी पेश करने में, कोई चाहता था जाट मुख्यमंत्री, तो कोई चाहता था मुख्यमंत्री किसान वर्ग से। अब सवाल यह है कि मुख्यमंत्री होने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए? एक आम आदमी के नज़रिए से देखे तो मुख्यमंत्री एक ऐसा व्यक्ति हो जो एक अच्छा लीडर हो, जो लोगों के दर्द के समझे और प्रदेश को प्रगति की राह पर आगे ले जाए। लेकिन कुछ मुट्ठी भर लोग यह चाहते थे कि मुख्यमंत्री या तो फलां जाती का हो या फिर फलां वर्ग का, ख़ैर भला हो पार्टी हाईकमान का जो किसी की दबाव में नहीं आई और एक उचित फ़ैसला लिया। वैसे यह मामला तो यहीं सुलट गया लेकिन जिस तरह से राजनीति पर जातिवाद हावी हो रहा है उससे लगता नहीं कि हम एक बहुत बड़े विभाजन की ओर बढ़ रहे है?
Saturday, December 13, 2008
बस यूँ ही
कोई कब तक दे सब्र का इम्तिहान
है आरज़ू.. रुख़ हो तेरा मेरी शहर की ओर
कम से कम घर जैसा लगे मेरा मकान
बस यही मांगता हूँ दुआ मेरे मौला
मुश्किलों में भी सलामत रहे ईमान
कुछ बात है हस्ती मिटती नहीं हमारी
हस्तियां कितनी और होंगी मुल्क पर क़ुर्बान