My Blog List

Saturday, December 27, 2008

बस यूं ही

इख़्तालाफ़ात का अंजाम जंग न हो
खुश्बू यह अमन की कभी कम न हो

सरहद पर डटा जवान किसी का सपना होगा
सरहद पर किसी के सपनों का ख़ून न हो

मादरे वतन को दिलो जान से चाहो मगर
किसी दूसरे की मां को कोई नुकसान न हो

अमन की राह पर वक्त है कुर्बान होने का
जंग-ए-मैदान पर कोई जान कुर्बान न हो

Friday, December 26, 2008

कौन चाहता है जंग?

इन दिनों भारत-पाक के बीच चल रहे तनाव से दिल कई बार आशंकित हो उठता है, दिनों-दिन हालात नाज़ुक होते जा रहे है और दोनों देश जंग के मुहाने पर आ खड़ी हई है। कल ही जब ऑफिस से निकल रहा था तो दोस्तों के साथ इन्ही सब विषयों पर चर्चा चल निकली। ऑफिस से निकलते-निकलते टेलीविज़न पर नज़र पड़ी तो एक खबरिया चैनल युद्धोन्माद फैला रहा था, कह रहा था "पाकिस्तान हो जाएगा चार घंटे में साफ"। एक मीडियाकर्मी होते हुए यह सब देखकर दुख होता है। सवाल यह है कि हमारी जंग किससे है, पाकिस्तान से या वहा पनप रहे आतंकवाद से, यकिनन वहा पल रहे आतंकवाद से, फिर क्यों हम लोग और दोनों मुल्कों के नेता युद्धोन्मादी बयानबाज़ी कर रहे है। पिछले दिनों पूर्व मंत्री अरुण शौरी ने संसद में ज़ोरदार भाषण दिया, कहा कि हमे एक आंख के बदले दोनों आंखे चाहिए और एक दांत के बदले पूरा जबड़ा चाहिए, इसी तरह पाक के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री कहते है कि भारत पाक पर हमले की हिम्मत नहीं कर सकता क्योंकि पाक के पास परमाणु हथियार है, जबकी हम सब जानते है कि पाक तभी परमाणु हथियारों का इस्तमाल करेगा जब भारत उसके प्रमुख शहरों पर चढ़ाई कर दे, जिसका कि भारत का कोई इरादा नहीं है। एक दिन आरफा ख़ानम शेरवानी का लेख पढ़ा, बिल्कुल ठीक लिखा है उन्होने, कि वहा का समाज भी हमसे बात करना चाहता है, हमसे व्यापार करना चाहता है और हो सकता है कि वहा के हुक्मरानों को मुंबई हमले की जानकारी थी ही नहीं, तो फिर हम जंग किससे लड़ेंगे। दूसरा सवाल यह उठता है कि क्या इस मंदी के दौर में यह जंग हमारी अर्थव्यवस्था के लिए ठीक रहेगा? पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तो खैर पूरी तरह चरमरा जाएगी। यह समस्या हमारी है और हमे यह तय करना है कि हमारी भलाई किसमे है।

Tuesday, December 23, 2008

बस यूं ही

वक्त यह देखो कैसा आया दोस्तों
हाथ तंग, जेब ख़ाली, रिज़्क पे सलीब दोस्तों

खुदकुशी है गुनाह... सबक-ए-क़ुरआन
फ़ैज़, अनवर, सलीम फिर क्यों बने फ़िदायीन दोस्तों

इंतख़ाब की बारिश से जन्नत हुई और भी हसीन दोस्तों
दोनों मुल्क इससे कुछ तो सबक ले दोस्तों

हवाओं का रुख़ भी कभी अपनी तरफ होगा दोस्तों
पूछ-परख होगी हमारी...खैर-मक़दम भी होगा दोस्तों

Friday, December 19, 2008

सबको बांटों...हमको डांटों..

मेरे ब्लॉग का शीर्षक इशारा करता है आदरणीय अमर सिंह की तरफ.. जी हाँ हमारे प्यारे सपा महासचिव अमर सिंह। नहीं-नहीं इस बार उन्होने बच्चन परिवार के किसी भवन का उद्घाटन नहीं किया है और न ही सोनिया गांधी या और किसी के ख़िलाफ ज़हर उगला है। उन्होने इस बार वो काम किया है जिसकी गूंज अंतराष्ट्रीय स्तर पर सुनाई देगी, दरअसल अमर सिंह ने क्लिंटन फांउडेशन को करोड़ों रुपए दान में दिए हैं....और हमारे अमरजी इतने अच्छे है कि वो इस बात को मानने से भी इंकार कर रहे है। ख़ैर यह उनकी निजी भावना है...वैसे आइए देखते है कि यह क्लिंटन फांउडेशन है क्या चीज़ और यह करती क्या है। क्लिंटन फांउडेशन के संस्थापक ख़ुद बिल क्लिंटन ही है और यह संस्था दुनिया में मौजूद तमाम बड़ी समस्याएं जैसे एड्स, मलेरिया, जलवायु परिवर्तन, बच्चों में मोटापा और ऐसी दुनिया में फैली कई चुनौतिय़ों से लड़ती है। ख़ैर यह एक सकारात्मक प्रयास है और इसकी सराहना होनी चाहिए, पर हमारे प्यारे नेताजी ने जो किया वो क्या है। भारत भी इन्हीं सब चुनौतियों से जूझ रहा और चलिए छोड़िए भारत को, नेताजी के अपने प्रदेश उत्तर प्रदेश में भी यह सारी समस्याएं है और वहा तो किसान भी कई कारणों से खुदकुशी कर रहे है। क्या नेताजी का फ़र्ज़ नहीं बनता है कि वो वहा कुछ मदद करे? मेरी एस बात से हो सकता है कुछ लोग इत्तफ़ाक न रखे, वो शायद यह तर्क दें कि तुम कैसे कह सकते हो कि अमर सिहं भारत में कोई मदद नहीं देते? मैं इस तर्क को ख़ारिज नहीं करता और मैं चाहता हूँ कि लोगों का तर्क सही हो, पर हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदुस्तान के नेता किसी भी बात का श्रय लेने से नहीं चूकते, और अगर उन्होंने कोई इमदाद उ.प्र. में दी होती जहा पर सपा की सरकार नहीं है ऐसे में वो इस मदद की अब तक मनादी करवा चुके होते। वैसे अमर सिंहजी जितनी राशी की मदद आपने विदेश में दी है उसकी आधी भी आप यहा दे देते तो काम चल जाता और वैसे भी हम हिंदुस्तानी है, थोड़े में काम चला लेते है।

Sunday, December 14, 2008

कुर्सी पर जाती हावी

चलिए पाँच राज्यों में चुनाव हो गए और फ़ैसला भी आ गया। हालांकी राजस्थान में चुनावी नतीजों ने बीजेपी को सकते में डाल दिया है... ख़ैर आने वाले दिनों में पार्टी हार के कारणों का पता भी लगा लेगी। यहा मैं नए निज़ाम यानी कांग्रेस का ज़िक्र करना चाहता हूँ। कांग्रेस जैसे तैसे जीत की दहलीज़ तक पहुँच ही गई और जोड़-जुगाड़ करके मंत्रीमंडल का गठन भी कर लेगी... लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दो-तीन दिन जो एपीसोड चला वो एक बानगी है हमारे गर्त में जाते राजनीति की। प्रदेश में कांग्रेस जब जीत कर आई तभी यह लगभग तय हो गया था अगले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत होंगे, लेकिन हमारे राजनेता अपने स्वार्थ की बली कैसे दे देते...? सब शुरु हो गए अपनी-अपनी दावेदारी पेश करने में, कोई चाहता था जाट मुख्यमंत्री, तो कोई चाहता था मुख्यमंत्री किसान वर्ग से। अब सवाल यह है कि मुख्यमंत्री होने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए? एक आम आदमी के नज़रिए से देखे तो मुख्यमंत्री एक ऐसा व्यक्ति हो जो एक अच्छा लीडर हो, जो लोगों के दर्द के समझे और प्रदेश को प्रगति की राह पर आगे ले जाए। लेकिन कुछ मुट्ठी भर लोग यह चाहते थे कि मुख्यमंत्री या तो फलां जाती का हो या फिर फलां वर्ग का, ख़ैर भला हो पार्टी हाईकमान का जो किसी की दबाव में नहीं आई और एक उचित फ़ैसला लिया। वैसे यह मामला तो यहीं सुलट गया लेकिन जिस तरह से राजनीति पर जातिवाद हावी हो रहा है उससे लगता नहीं कि हम एक बहुत बड़े विभाजन की ओर बढ़ रहे है?

Saturday, December 13, 2008

बस यूँ ही

दुश्वारियों से लगातार जंग है जारी
कोई कब तक दे सब्र का इम्तिहान

है आरज़ू.. रुख़ हो तेरा मेरी शहर की ओर
कम से कम घर जैसा लगे मेरा मकान

बस यही मांगता हूँ दुआ मेरे मौला
मुश्किलों में भी सलामत रहे ईमान

कुछ बात है हस्ती मिटती नहीं हमारी
हस्तियां कितनी और होंगी मुल्क पर क़ुर्बान