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Saturday, December 13, 2008

बस यूँ ही

दुश्वारियों से लगातार जंग है जारी
कोई कब तक दे सब्र का इम्तिहान

है आरज़ू.. रुख़ हो तेरा मेरी शहर की ओर
कम से कम घर जैसा लगे मेरा मकान

बस यही मांगता हूँ दुआ मेरे मौला
मुश्किलों में भी सलामत रहे ईमान

कुछ बात है हस्ती मिटती नहीं हमारी
हस्तियां कितनी और होंगी मुल्क पर क़ुर्बान

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