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Friday, November 4, 2011

घुटन

मर्ज़ी के ख़िलाफ चल रही हैं सांसे मेरी
ना काबिले बर्दाश्त होती जा रही है ये घुटन

नुमाइश सी लगने लगी है ये ज़िंदगी
देखें कब नसीब होती है इसे क़फ़न

वहुत ढूंढा, मगर नहीं मिली ऐसी कव्रगाह
जहां कर सकूं तुम्हारी यादें दफ़न

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