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Thursday, October 27, 2011

हर रात...

हर रात सिलता हूँ माज़ी की कतरने
हर रात होती है यादों से जद्दोजहद

हर रात अंधेरे में यादें होती हैं रोशन
हर रात बिस्तर की सिलवटों में ढूंढता हूँ तुम्हे

हर रात उठती टीस को पहनाता हूँ क़फ़न
हर रात सुलगते अरमानों का घोंटता हूँ गला

आज रात का फिर वही किस्सा
अंधेरा, सन्नाटा, तन्हाई मेरा हिस्सा

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