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Tuesday, January 20, 2009

भारत की "ख़ुश्बू"

कुछ महिनों पहले जब बटला हाउस एन्काउंटर हुआ तो सभी मीडिया वाले चाहे वो अख़बार वाले हों या फिर ख़बरिया चैनल वाले , सभी उत्तरप्रदेश के आज़मगढ़ शहर को बदनाम करने पर तुले हए थे, लगभग सभी इस बात को साबित करने पर तुले हुए थे कि यह आज़मगढ़ नहीं बल्कि आतंकगढ़ है। लग ऐसा रहा था जैसे यहा के हर मुसलमान पर अंगुली उठाई जा रही हो।

इन तमाम आरोपों का विरोध करने वालों की कभी नहीं सुनी गई, ख़ैर यह मामला अब ठंडा पड़ चुका है, लेकिन विडम्बना तो यह है कि इस लोकतांत्रिक देश में मुसलमानों पर आरोप तो बड़ी जल्दी लग जाते हैं और उन्हे बढ़ा-चढ़ा कर भी दिखाया जाता है पर जब भारत का यही मुसलमान कोई ऐसा काम करता है जिससे भारत का ही नाम रोशन होता है तब इस ओर कोई तवज्जो नहीं देता।

मैने इतनी लंबी-चौड़ी भूमिका ख़ुश्बू के लिए बांधी है। यूपी का एक छोटा सा शहर है "अमरोहा", वहीं के चौगोरी मोहल्ला की रहने वाली है तेईस साल की ख़ुशबू मिर्ज़ा। ख़ुशबू, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद में बतौर इंजीनियर काम करती है और मिशन चंद्रयान के चेकाउट डीविज़न के लिए चुने गए 12 इंजीनियरों के दल की सबसे छोटी सदस्य थी।

इससे पहले ख़ुश्बू एडोब सॉफ्टवेयर में काम करती थी और यहा यह उल्लेखनीय है कि ख़ुश्बू ने इसरो काफी कम सैलरी में ज्वाईन किया है। यहा यह सोचने वाली बात है कि जो लड़की राष्ट्र की प्रगती में हाथ बंटा रही है उस लड़की के बारे में मीडिया ने कितनी माईलेज दी है, क्या हमारा मीडिया पक्षपात नहीं कर रहा है, क्यों ऐसी ख़बरों को तरज़ीह नहीं दी जाती। ओबामा का शपथ ग्रहण समारोह हम बकायदा ढोल पीट-पीटकर दिखाते है पर जब कोई भारतीय महिला और ऊपर से मुसलमान कोई उल्लेखनीय काम करती है तो वो खबर रद्दी ही समझी जाती है, शायद इस ख़बर में कोई मसाला नहीं था। एक मीडियाकर्मी होने के नाते ऐसी पत्रकारिता देखकर अफसोस होता है।

1 comment:

  1. यही विडंबना है इस मीडिया की कि वो गुड़िया और इमराना को तो हैडलाइंस बनाता है पर खुश्बु को तरज़ीह नहीं देता । यह मीडिया का दोहरा मापदंड है ।

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