इन दिनों भारत-पाक के बीच चल रहे तनाव से दिल कई बार आशंकित हो उठता है, दिनों-दिन हालात नाज़ुक होते जा रहे है और दोनों देश जंग के मुहाने पर आ खड़ी हई है। कल ही जब ऑफिस से निकल रहा था तो दोस्तों के साथ इन्ही सब विषयों पर चर्चा चल निकली। ऑफिस से निकलते-निकलते टेलीविज़न पर नज़र पड़ी तो एक खबरिया चैनल युद्धोन्माद फैला रहा था, कह रहा था "पाकिस्तान हो जाएगा चार घंटे में साफ"। एक मीडियाकर्मी होते हुए यह सब देखकर दुख होता है। सवाल यह है कि हमारी जंग किससे है, पाकिस्तान से या वहा पनप रहे आतंकवाद से, यकिनन वहा पल रहे आतंकवाद से, फिर क्यों हम लोग और दोनों मुल्कों के नेता युद्धोन्मादी बयानबाज़ी कर रहे है। पिछले दिनों पूर्व मंत्री अरुण शौरी ने संसद में ज़ोरदार भाषण दिया, कहा कि हमे एक आंख के बदले दोनों आंखे चाहिए और एक दांत के बदले पूरा जबड़ा चाहिए, इसी तरह पाक के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री कहते है कि भारत पाक पर हमले की हिम्मत नहीं कर सकता क्योंकि पाक के पास परमाणु हथियार है, जबकी हम सब जानते है कि पाक तभी परमाणु हथियारों का इस्तमाल करेगा जब भारत उसके प्रमुख शहरों पर चढ़ाई कर दे, जिसका कि भारत का कोई इरादा नहीं है। एक दिन आरफा ख़ानम शेरवानी का लेख पढ़ा, बिल्कुल ठीक लिखा है उन्होने, कि वहा का समाज भी हमसे बात करना चाहता है, हमसे व्यापार करना चाहता है और हो सकता है कि वहा के हुक्मरानों को मुंबई हमले की जानकारी थी ही नहीं, तो फिर हम जंग किससे लड़ेंगे। दूसरा सवाल यह उठता है कि क्या इस मंदी के दौर में यह जंग हमारी अर्थव्यवस्था के लिए ठीक
रहेगा? पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तो खैर पूरी तरह चरमरा जाएगी। यह समस्या हमारी है और हमे यह तय करना है कि हमारी भलाई किसमे है।
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